Saturday, February 25, 2023

शायरी ज़िन्दगी के



जिंदगी के बहार समेटने चले थे हम...
फिजाओं के दस्तूर बिना जाने...
खाक में मिटा दिए गए....
मेरे दिल के हर-एक फसाने.

बस एहसास बाकी है अब तो...
मिट गए वो सारे महखाने...
ना जुस्तजू बची अब तो और ना ही हमें चाहने वाले

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हर आसू हर गम है मेरे
सपने भी अब नम है मेरे
जिंदगी से ऐसी उल्फत हुई कि
हर गम ही अब हमसफ़र है मेरे
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दर्द तन्हाई का नहीं
और ना ही उनके जाने का है....
गिला तो है बस इस जिंदगी से
जिसके हर पल पे नशा बस उनको पाने का है।

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दिल जले से मत पूछो कि आंसुओं से भी क्या आग बुझती है
हम तो भूल गए वो दुनिया जहां सुकून भी होता है

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इस दुनिया की हर अक्स में दिखता अब मुझे दर्द है
जैसे तन्हाइयों की महफ़िल में मंज़िलों की चाह हो.

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दीदार न भी हो तो बस इतना बता दो
कहीं ना कहीं तो हो तुम इस जहाँ में

हम इन सांसो को थाम कर रखेंगे तब तक
तुम्हारे होने की खुशबू आ न जाए इन फ़िज़ाओं में।

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किसी ने रोक रखा था हमें महखाने में
पूछा तो कहता है
जाएगा तभी जो तू मिटा दे दर्द को या मिट जाए तू ही यहां
कैसे बतायें उसे
मैं और दर्द अलग कहां - मिटेंगे तो दोनो या रहेंगे तो दोनो।

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सब बेरंग हैं यहाँ, सबको तलाश है रंग की
सब अकेले हैं यहाँ, सबको तलाश खुद के संग की
सब बैचेन हैं यहाँ, मिल ही नहीं रहा किनारा
बरसो से जैसे मिला न हो, खुद का ही सहारा
किसको रंग लगाए, किसका रंग चढ़ाये ?
किसके बुझे मन की होलिका जलाएं ?
इस बेरंगी मन को किसकी आस दिखाएं !
आप सबको होली मुबारक़ !